यस आई एम—10 [बिगनिंग ऑफ नॉवेल]
★★★
नॉवेल
एक लडकी छोटे से धूल भरे कमरे के एक कोने में अकेली बैठी हुई थी। बाहर से देखने पर वह जितनी शांत लग रही थी उसके दिमाग में उतनी ही ज्यादा उथल पुथल मच रही थी। वह एक तेईस साल की लड़की थी जिसकी आँखों का रंग नीला था। उस लडकी ने फटे पुराने कपड़े पहने हुए थे जोकि उसके साइज से बहुत बड़े थे।
वह लड़की धीरे से उठी और कमरे में मौजूद इकलौती दीमक खाई कुर्सी पर जाकर बैठ गई। इसके बाद वह गौर से कमरे की दीवार को देखने लगी जिसका पेंट लगभग उतर चुका था। लडकी धीरे से कुर्सी से उठी और उसके ऊपर चढ़कर खड़ी हो गई। कमरें में सिर्फ एक दरवाजा और उसके अलावा एक रोशनदान भी था लेकिन दरवाजे के बंद होने की वजह से रोशनदान ही कमरे से बाहर की दुनिया के साथ संपर्क का माध्यम था।
लडकी कमरे से बाहर की दुनियां को देखने की कोशिश करने लगी लेकिन रोशनदान तक उसकी पहुंच पर्याप्त नहीं थी। तभी एक ठंडी हवा का झोका आया और उस लडकी के चेहरे से टकरा गया। उस लडकी के चेहरे पर क्षणिक खुशी के भाव आए और उसने उन ठंडी हवा के झोंको को अपने फेफड़ों में भर लिया।
"कैद...ये किसी इंसान के शरीर को कैद करने के लिए काफी है....लेकिन क्या इन सबसे किसी के दिमाग को कैद किया जा सकता है ......... शायद नहीं। विचार खेत में घुसने वाले पशुओं की तरह होते है जिनपर एक हद तक काबू किया जा सकता है लेकिन रोका नहीं जा सकता। दुनियां में बड़े अजीब किस्म के लोग है। वो ये नही जानते की शरीर को तो कहीं पर भी जाने से रोका जा सकता है लेकिन किसी के मस्तिष्क के विचारों और उससे निकलने वाली तरंगों को रोकना उनके सामर्थ्य से बाहर है।“
लडकी कुर्सी से नीचे उतरी और जमीन पर वज्रासन की मुद्रा में बैठ गई।
"इंसान हमेशा से ही डरपोक किस्म का रहा है। जब भी उसका मुकाबला अपने से ताकतवर और अलग तरह के जीव से होता है तो वो डर जाता है। डर जाता है कि कहीं उसका अस्तित्व समाप्त ना हो जाए। डर जाता है कि कहीं उसका पृथ्वी पर से एक छत्र साम्राज्य न मिट जाए।" वह कुछ देर के लिए रूकी और फिर आगे बोली। "अपने इसी डर के कारण आज इंसान प्रकृति का और खासकर खुद का दुश्मन बना हुआ है लेकिन इंसान अपने डर पर काबू करने की बजाय उसके कारण को खत्म करने की कोशिश करता है। यही कारण है की इंसान अपने लिए खुद मुसीबतों को न्यौता देता है।" लडकी के चेहरे पर इस बीच कोई भाव नहीं आया। उसने खुद के दिमाग को शान्त किया और ध्यान लगाने की कोशिश करने लगी। जल्द ही वह इसमें कामयाब भी हो गई।
उसके माथे के बाईं तरफ से लाल रंग की पतली और लगभग अदृश्य तरंगे बाहर निकलने लगी। वें तरंगे दीवारों पर रेंगते हुए रोशनदान की दिशा में आगे बढ़ने लगी। रोशनदान से बाहर निकलकर वें तरंगे हवा में तैरने लगी। वें तरंगे जहां कहीं भी जा रही थी उसका दृश्य लडकी को अपनी बंद आंखों से किसी चलचित्र की भांति दिखाई दे रहा था। मस्तिष्क की तरंगे इस समय उसी गली में तैर रही थी जिस गली में लडकी का घर था। तभी अचानक लडकी के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान तैरने लगी। सामने गली के अंतिम छोर से एक आदमी अपनी मस्तमौला चाल में आगे बढ़ रहा था।
उस गली में वह आदमी अकेला था लेकिन फिर भी वह अकेला नहीं था जो आगे बढ़ रहा था। मस्तिष्क तरंगे भी आगे बढ़ रही थी लेकिन उस आदमी की दिशा में। मस्तिष्क तरंगे उस आदमी के पास पहुंच गई जिसका उसे पता भी नहीं चला। धीरे धीरे वें तरंगे उस आदमी के कान के रास्ते से दिमाग में प्रवेश करने लगी लेकिन उस आदमी को पता भी नहीं चला कि कब उसके मस्तिष्क के ऊपर किसी और का नियंत्रण आ चुका था। तभी उस आदमी को एक जोरदार झटका लगा और वह अपने स्थान पर मूर्ति की तरह जड़ हो गया। उसके हाव भाव पूरी तरह से बदल गए। जहां अब तक वह किसी शराबी की तरह झूम झूमकर चल रहा था वहीं अब उसकी चाल में एक अलग ही अकड़ आ गई थी।
शरीर तो उसी आदमी का था लेकिन उसके दिमाग पर अब उस लड़की का कंट्रोल था। वह आदमी धीरे धीरे किसी यंत्र की भांति आगे बढ़ने लगा और एक लकड़ी के दरवाजे के सामने खड़ा हो गया। उसने दरवाजे पर धीरे से दस्तक दी। सामने से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। उसने फिर से दरवाजे पर दस्तक दी लेकिन इस बार भी किसी ने दरवाजा नहीं खोला।
लडकी के दिमाग का पारा अब तक चढ़ चुका था। वो अपने और अपनी आजादी के बीच के फासले के बीच किसी को नहीं आने देना चाहती थी। उसने आदमी के दिमाग को दरवाजा तोड़ने का निर्देश दिया। वह आदमी कुछ कदम पीछे हटा और जैसे ही वह दरवाजा तोड़ने के लिए आगे बढ़ने लगा तभी अचानक दरवाजा खुल गया और अंदर से एक उन्नीस साल का युवक प्रकट हुआ।
"ओह! तो तुम हो विवेक। मुझे लगा पता नहीं कौन है।" उस युवक ने राहत की सांस लेते हुए कहा। वह एक सामान्य कद काठी का युवक था जबकि सामने खड़ा आदमी चालीस साल का था। जिसे देखकर साफ पता चलता था कि उसने जिम में कितना पसीना बहाया था।
विवेक ने कोई प्रतिक्रिया नही दिखाई और वह सीधे युवक को धक्का देकर घर में घुस गया। युवक को विवेक का बदला हुआ रवैया देखकर आश्चर्य हुआ। उसने झट से दरवाजा बन्द किया और जैसे ही उसने पीछे पलटकर देखा तो डर से उसका चेहरा पीला पड़ गया।
विवेक की आंखो ने विवेक के साथ हुए हादसे को साफ साफ बयां कर दिया। कुछ गलत होने के डर से उसने अपने आस पास नजरें दौड़ानी शुरू की तो उसे आंगन के एक कोने में लोहे की रॉड दिखाई दी। वह धीरे धीरे बड़ी सावधानी से रॉड की तरफ बढ़ने लगा। वो जनता था कि सामने जो शख्स खड़ा था वो उसका दोस्त विवेक नहीं था।
सामने खड़े शख्स का शरीर तो विवेक का था लेकिन उसके अन्दर एक शातिर और खूँखार लड़की का दिमाग था जिसे घर के एक कमरे में कैद किया हुआ था। इससे पहले की युवक लोहे की रॉड तक पहुँचता विवेक ने पास ही टेबल के ऊपर रखे काँच के फूलदान को उठाया और युवक की दिशा में फेंक दिया। निशाना अपने लक्ष्य पर जाकर लगा।
युवक के सिर से टकराते ही काँच का फूलदान टूट गया और युवक धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ा। उसके सिर से बड़ी तेजी से खून निकलने लगा। काँच के कुछ छोटे बड़े टुकड़े उसके सिर में घुस गए थे जिन्होंने युवक के बचने की संभावना को कम कर दिया था। युवक जिस स्थान पर गिरा था उस स्थान पर एक नुकीला काँच का टुकड़ा पड़ा हुआ था जोकि युवक के गिरते ही उसकी गर्दन में घुस गया था और घुसते ही उसने युवक की गर्दन में मौजूद धमनी को काट दिया था।
युवक की आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा। अचानक ऐसा कुछ होने की उसने कल्पना भी नहीं कि थी। लड़की को काबू करने में उससे कहाँ गलती हुई थी अब इसके बारे में सोचने के लिए उसके पास पर्याप्त समय था।मरने के बाद इंसान के पास वैसे भी करने को कुछ नहीं होता।
वह एक छोटा सा घर था और ये घटना उसी छोटे से घर के आंगन में घट रही थी। सामने दो छोटे छोटे कमरें थे और उन्हीं की बगल में एक सीढ़ी थी जो छत पर जाती थी। विवेक सीढ़ियों के पास वाले कमरे में चला गया। कमरा बिल्कुल साधारण था। उसमें सिर्फ एक लकड़ी की अलमारी और एक चारपाई ही थी। इसके अलावा कमरे में एक स्टूल भी था जिसके ऊपर एक मटका रखा हुआ था। कमरा साधारण से भी साधारण था। कमरे की दीवार का पेंट उखड़ा हुआ था और कहीं कहीं से तो दीवार का प्लास्टर भी झड़ा हुआ था। घर की स्थिति को देखकर लगता नहीं था कि वहां कोई इंसान रहता था।
कमरे के फर्श पर एक कालीन बिछा हुआ था। पूरे घर में एक वही सामान था जो सही सलामत था। विवेक आगे बढ़ा और उसने कालीन के एक सिरे को पकडकर जोर से खींच दिया। उसके ऐसा करते ही आधे फर्श से कालीन हट गया और कमरे की कच्ची जमीन दिखाई देने लगी। वाकई ये घर जिसका भी था उसकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी।
लड़की अभी भी ध्यान की मुद्रा में थी। तभी एक जोरदार धमाके की आवाज ने उसका ध्यान भंग किया। शायद कोई किसी भारी चीज को जमीन पर पटक रहा था। आवाज कमरें में गूंज रही थी और लड़की को अपने कानों पर हाथ रखने को विवश कर रही थी। ना जाने कितने ही सालों से उसने एक सुईं गिरने की आवाज तक नहीं सुनी थी इसलिए ये आवाज उसके कानों के लिए बहुत कष्टदाई साबित हो रही थी।
एक बार फिर से धड़ाम्म की आवाज आई और दरवाजा खुल गया। लड़की ने दरवाजे की तरफ देखा तो वो बन्द था जैसा कि वो उसे हमेशा से ही देखती आई थी। तभी उसकी नजर कमरें की छत पर गई तो उसकी आंखें आश्चर्य से फैल गई।
"कमाल है..... मै इतने सालों से एक तहखाने में रह रही थी और मुझे ही पता नहीं चला।" लड़की धीरे से दरवाजे की तरफ मुड़ी। ओह! इसका मतलब ये कोई दरवाजा नहीं सिर्फ एक छलावा है। अब समझ में आया कि मै कभी एक दीमक खाए लकड़ी के दरवाजे को तोड़ क्यों नहीं पाई। आखिर एक दीवार को तो दारासिंह भी नहीं तोड़ सकता।"
लड़की ने छत में बने चोर दरवाजे की तरफ देखा। वह उसकी पहुँच से दूर था। तभी ऊपर खड़े विवेक ने तहखाने के अन्दर एक सीढ़ी पहुंचाई जिसके ज़रिए लड़की कमरे से बाहर आ गयी।
उसने बहुत दिनों बाद खुलकर आजादी की सांस ली। वो उस कमरें में कितने सालों से बंद थी उसने गिनना भी छोड़ दिया था। जब से उसने सही से होश संभाला था वो इसी कमरें में कैद थी। इतने सालों की कैद की वजह से उसे अब यह भी पता नही था कि इस दुनियां में उसके अलावा अन्य कोई ओर भी मौजूद है। बन्द कमरे की दुनिया ही उसकी ज़िन्दगी बन चुकी थी लेकिन जब उसने आदमी को पहली बार कमरें में देखा तो तब उसे पता चला कि कमरें से बाहर भी एक दुनियाँ है जिससे उसने बहुत दिनों से देखा ही नहीं।
हालांकि उस वक्त वो जान नहीं पाई थी कि वह कमरें के अंदर कैसे आया था। इतनी सालों की कैद की वजह से अब उसका बाहरी दुनियाँ को देखने के लिए जी मचलने लगा था। वो देखना चाहती थी कि बाहरी दुनिया अब कैसी बन चुकी है। जैसी भी होगी इस कमरे की दुनिया से तो बेहतर होगी। उसने बाहरी दुनिया में अपनी कल्पनाओं को भेजा। उसकी कल्पना में बाहरी दुनिया बेहद खूबसूरत थी। इसके बाद तो वह बाहर जाने के लिए और भी मचलने लगी। मगर एक समस्या थी। कमरें से बाहर उसे वह आदमी ही निकाल सकता लेकिन वो उसे बाहर निकालेगा इसकी कोई गारन्टी नही थी।
लड़की विवेक के साथ आँगन में पहुँच गई। युवक के शरीर में अभी भी जान बाकी थी। लड़की सीढ़ियों के पास मौजूद किचन में गयी। जब वह बाहर आई तो उसके हाथ में एक धारदार चाकू था। वह युवक के बेहोश शरीर के पास जाकर घुटनों के बल बैठ गयी और विवेक उसके पास किसी पालतू कुत्ते की तरह खड़ा हो गया।
"जब मै कभी कमरें से बाहर नहीं आई तो मुझे कैसे पता चला कि चाकू मुझे कहाँ मिलेगा? इस सवालों के जवाब और इसके साथ साथ बाकि के सभी सवालों के जवाब दूंगी पर उसे पहले मैं इसी खुली हवा को एक बार महसूस तो कर लूं।"
लड़की ने धीरे से युवक के चेहरे की तरफ देखा। युवक का चेहरा किसी हीरो से कम नही था और ऊपर से उसके काले घने बाल जोकि उसके माथे पर पड़े हुए थे...उसे और भी मासूम बना रहे थे।
"क्या मुझे इसे मार देना चाहिए? मगर मै इसे जानती तक नहीं और देखा जाए तो इसने अब तक ऐसा कुछ नहीं किया जो इसे मारने के लिए काफी हो।" लड़की ने अपने दिमाग से सवाल किया और जवाब भी तुरन्त मिल गया और इसके बाद वह बड़े ही खूंखार तरीके से बोली। "इसने तुम्हे इतने सालों तक कैद करके रखा... क्या ये काफी नही है इसे मुक्ति देने के लिए।........लेकिन इसने मुझे कोई तकलीफ भी तो नही पहुँचाई और हो सकता है कि ये मेरी मदद कर रहा हो।" बोलने के साथ साथ लड़की खुद से ही सवाल कर रही थी और खुद ही उनके जवाब भी दे रही थी लेकिन इसी बीच उसका ध्यान विवेक की तरफ नही गया जिसकी चेतना वापस आ चुकी थी।
विवेक ने जैसे ही अपने आस पास देखा तो हक्का बक्का रह गया। उसके सामने उसका दोस्त खून से लतपथ पड़ा था और उसके पास एक लड़की चाकू लेकर बैठी हुई थी। विवेक ने अनुमान लगाया कि वहाँ क्या हुआ होगा और जैसे ही उसके दिमाग में लड़की के खतरनाक होने की बात आई तो उसने लड़की के हाथ पर झपट्टा मारकर चाकू छीनने की कोशिश की।
लड़की अभी भी अपने विचारों में खोई हुई थी। इस हमले से वह चौंक गयी और विवेक की तरफ देखने लगी। उसने पास ही पड़ी लोहे की रॉड उठाई और विवेक के सिर पर दे मारी। सिर पर रॉड पड़ते ही विवेक का सिर चकराने लगा और वह जमीन पर गिर पड़ा। हालांकि लड़की ने अपनी पूरी ताकत से वार किया था लेकिन वो विवेक को मारने के लिए नाकाफी था।
वह धीरे से विवेक की तरफ झुकी और उसने चाकू की नोक को विवेक की गर्दन के ऊपर कर लिया। विवेक की आंखों में ख़ौफ़ साफ झलकने लगा। वह लड़की से हर चीज में ताकतवर था लेकिन लड़की के द्वारा किये गए वशीकरण से उसका दिमाग अभी भी शिथिल अवस्था में था।
लड़की ने विवेक की आँखों में डर देखा तो उसने अपनी नाजुक हथेलियों से उसकी आँखों को ढक लिया। इसके बाद उसने चाकू को धीरे से ऊपर किया और उसे विवेक के सीने में उतार दिया। एक वार शायद काफी नही था इसलिए लड़की ने एक के बाद एक दर्जनों वार किये और फिर विवेक की तरफ देखा। वो खामोश हो चुका था और शायद युवक भी। आँगन का फर्श उन दोनों के खून से तर बतर हो चुका था। इसके बाद वह लड़की बहुत देर तक बड़े गौर से उन दोनों के बेजान शरीर को देखती रही और उसके बाद एक श्लोक पढ़ने लगी।
"नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत॥"
"जब मैंने इन लोगों को इतने प्यार से मार ही दिया है तो इनकी आत्मा की शान्ति के लिए श्लोक पढ़ना भी तो मेरा ही काम है।" लड़की ने बिना किसी भाव से कहा और अपने भाव को बरकरार रखते हुए बोली। कहने के बाद उसने बड़ी बेरहमी से उन लाशों को पैर से धक्का मारा और वहां से चल दी।
इतना लिखते के बाद तृष्णा अपने लिखे हुए शब्दों को गिनने लगी। "दो हजार से भी ज्यादा वर्ड्स हो गए! पहली बारी में ही मैंने कितना कुछ लिख दिया।" उसने खुशी जाहिर करते हुए कहा और फिर फिर आगे बोली। "वैसे जितना मैने लिखा उस से तो ये ही मालूम चला। हम कहानी अपने आस पास के लोगों से प्रेरित हो कर, अपनी कल्पना शक्ति से बनाते है। बस आप में अपने आस पास की चीजों की समझने की समझ होनी चाहिए। जैसे मैने श्रेयाँशी दी के मामले को लेकर किया।" इतना कहते ही वह ‘स्टोरी वर्ल्ड’ साइट खोल कर बैठ गई।
★★★
जारी रहेगी...मुझे मालूम है आप सभी समीक्षा कर सकते है, बस एक बार कोशिश तो कीजिए 🤗❤️
hema mohril
25-Sep-2023 03:25 PM
Fabulous
Reply
साहित्य का अनूठा संगम
02-Feb-2022 08:59 PM
Good
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Karan
28-Dec-2021 01:56 PM
Good story
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